कहने को कुछ भी न बचा
हर बात हो गई,
आओ कहीं शराब पिएँ
कि रात हो गई।
थोड़ी सी पी लिया करते हैं
जीने की तमन्ना में,
डगमगाना भी जरूरी है
संभलने के लिए।
तुम्हारी बेरूखी ने लाज रख ली
बादाखाने की,
तुम आँखों से पिला देते तो
पैमाने कहाँ जाते।
मेरी तबाही का इल्जाम
अब शराब पर है,
करता भी क्या और तुम पर
जो आ रही थी बात।
मैं तोड़ लेता अगर वो गुलाब होती,
मैं जवाब बनता अगर वो सवाल होती,
सब जानते हैं मैं नशा नहीं करता,
फिर भी पी लेता अगर वो शराब होती।
साकी तेरे निगाह की
क्या सियाहकारियाँ हैं,
मैख्वार होश में हैं
ज़ाहिद बहक रहा है।
होशो-हवास में बहको
तो कोई बात बने,
यूँ नशे में लुढ़कना तो
यार पुराना हुआ।
ताजगी मिज़ाज में और रंगत
जैसे पिघला हुआ सोना,
तारीफ तेरी नहीं साकी,
यह ज़िक्र शराब का है।
मैकदे लाख बंद करें
जमाने वाले,
शहर में कम नहीं
आँखों से पिलाने वाले।
मुखातिब हैं साकी की
मख्मूर नजरें,
मेरे जर्फ का
इम्तिहाँ हो रहा है।
पीने से कर चुका था
मैं तौबा दोस्तों,
बादलों का रंग देख
नीयत बदल गई।
अलग बैठे थे कि आँख
साकी की पड़ी मुझ पर,
अगर है तिश्नगी कामिल
तो पैमाने भी आयेंगे।
क़िबला-ओ-काबा ये तो
पीने पिलाने के हैं दिन,
आप क्या हलक के
दरबान बने बैठे हैं।
वो पिला कर जाम लबों से
अपनी मोहब्बत का,
अब कहते हैं नशे की आदत
अच्छी नहीं होती।
लहरों पे खेजता हुआ लहरा के पी गया,
साक़ी की हर निगाह पे बल खा के पी गया।
मैंने तो छोड़ दी थी पर रोने लगी शराब,
मैं उसके आँसुओं पे तरस खा के पी गया।
देखा किये वह मस्त
निगाहों से बार-बार,
जब तक शराब आई
कई दौर चल गये।
मयखाने की इज्ज़त का
सवाल था हुज़ूर,
सामने से गुजरे तो,
थोड़ा सा लड़खड़ा दिए।
तौहीन न करना कभी
कह कर कड़वा शराब को,
किसी ग़मजदा से पूछो
इसमें कितनी मिठास है।
छीनकर हाथों से जाम
वो इस अंदाज़ से बोली,
कमी क्या है इन होठों में
जो तुम शराब पीते हो।
तुम क्या जानो शराब कैसे पिलाई जाती है,
खोलने से पहले बोतल हिलाई जाती है,
फिर आवाज़ लगायी जाती है आ जाओ टूटे दिल वालों,
यहाँ दर्द-ए-दिल की दवा पिलाई जाती है।
नशा तब दोगुना होता है जनाब,
जब जाम भी छलके और
आँख भी छलके।
मय छलक जाए तो
कमजर्फ हैं पीने वाले,
जाम खाली हो तो साकी
तेरी रूसवाई है।
रात हम पिये हुए थे मगर,
आप की आँखें भी शराबी थी,
फिर हमारे खराब होने में,
आप ही कहिए क्या खराबी थी।
निगाहे-मस्त से
मुझको पिलाये जा साकी,
हसीं निगाह भी
जामे-शराब होती है।
असर न पूछिए साकी की
मस्त आँखों का,
ये देखिये कि
कोई होशमंद बाकी है?
मैं समझता हूँ तेरी
इशवागिरी को साकी,
काम करती है
नजर नाम पैमाने का है।
यह साकी ने सागर में
क्या चीज दे दी,
कि तौबा हुई
पानी-पानी हमारी।
ग़मे-दुनिया में ग़मे-यार
भी शामिल कर लो,
नशा बढ़ता है शराबें
जो शराबों में मिलें।
एक पल में ले गई
मेरे सारे ग़म खरीद कर,
कितनी अमीर होती है
ये बोतल शराब की।
तोहफे में मत गुलाब लेकर आना,
मेरी क़ब्र पर मत चिराग लेकर आना,
बहुत प्यासा हूँ बरसों से मैं,
जब भी आना शराब लेकर आना।
जाहिद ने मैकशी की
इजाज़त तो दी मगर,
रखी है इतनी शर्त
खुदा से छुपा के पी।
नशा पिला के गिराना तो
सब को आता है,
मज़ा तो तब है कि
गिरतों को थाम ले साक़ी।
ग़म इस कदर बढ़े कि घबरा के पी गया,
इस दिल की बेबसी पे तरस खा के पी गया,
ठुकरा रहा था मुझे बड़ी देर से ज़माना,
मैं आज सब जहान को ठुकरा के पी गया।
यूँ बिगड़ी बहकी बातों का
कोई शौक़ नही है मुझको,
वो पुरानी शराब के जैसी है
असर सर से उतरता ही नहीं।
पीता हूँ जितनी
उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी,
साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी
हो शराब में।